खरी – खरी,, चले भाट हियं हरषु ना थोरा,, अब नए दौर में चाटुकार – दलाल।
खरी - खरी,, चले भाट हियं हरषु ना थोरा,, अब नए दौर में चाटुकार - दलाल।
राजशाही के दौर में राव के भांट फिर आया नया दौर तो मान्यवर के चाटुकार और दलालों से तहस नहस लोकतांत्रिक व्यवस्था।
निश्चित रूप से अच्छे काम की बड़ाई लिखनी…