Loksabha election 2024, मोदी, अमित शाह और योगी का नहीं चला जादू आखिर कैसे यूपी में घिर गई भाजपा।
Loksabha election 2024, मोदी, अमित शाह और योगी का नहीं चला जादू आखिर कैसे यूपी में घिर गई भाजपा।
उत्तर प्रदेश की राजनीति केंद्र सरकार के सत्ता की रीढ़ कही जाती है देखा जाए तो जब-जब भाजपा केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रही है तो उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा योगदान रहा है लोकसभा सीटों के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है और वहां भाजपा नब्बे के दशक से बड़ी ताकत बनकर लोकसभा चुनाव में बढ़िया प्रदर्शन करती रही है राम मंदिर का मुद्दा उत्तर प्रदेश की राजनीति ही नहीं संपूर्ण देश की राजनीति में भाजपा के सफलता की सीढ़ी माना जाता रहा लोकसभा चुनाव 2024 में जिस तरह से राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे को लेकर भाजपा ने प्रचार प्रसार किया लेकिन उस तरह का लाभ भाजपा को नहीं मिला मतदान के बाद टीवी चैनलों के एग्जिट पोल और राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना था कि इस बार उत्तर प्रदेश में भाजपा 70 सीटों तक जीत सकती है लेकिन जब परिणाम आए तो उससे आधा सीटों पर भाजपा सिमट कर रह गई। यहां तक कि बनारस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरुआती दौर में कांग्रेस प्रत्याशी से पिछड़ गए थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत तो हुई लेकिन बीते चुनावों में उन्होंने जो वोट प्रतिशत हासिल किया था उसके मुताबिक इस चुनाव में 10 प्रतिशत से अधिक वोट घटे हैं और ऐसा पूरे उत्तर प्रदेश में देखने को मिला जहां 70 सीटों पर जीत का सपना संजोए भाजपा को 33 सीटों पर सिमटना पड़ा।
उत्तर प्रदेश में दिग्गजों पर सभी ने लगाया दांव।
लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में सत्ता और विपक्ष दोनों तरफ से दिग्गज हस्तियां चुनाव मैदान में थीं बनारस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी थे तो वहीं रायबरेली से कांग्रेस नेता राहुल गांधी चुनाव मैदान में थे लखनऊ से राजनाथ सिंह चुनाव मैदान में थे और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव भी चुनाव मैदान में थीं उत्तर प्रदेश के दम पर ही भाजपा ने 400 पार का नारा दिया था लेकिन मोदी, योगी और अमित शाह पर अखिलेश यादव भारी पड़ गए जबकि आख़िरी चरण के मतदान के बाद जब टीवी चैनलों के एग्ज़िट पोल्स आए तो ऐसा लग रहा था कि उत्तर प्रदेश में लड़ाई एकतरफ़ा भाजपा के पक्ष में है लेकिन जब परिणाम आए तो भाजपा का अभेद्य किला उत्तर प्रदेश धराशाई हो गया देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में सभी पार्टियों ने दिग्गजों के मैदान में उतारा था जिसमें भाजपा के कई दिग्गज स्मृति इरानी, मेनका गांधी चुनाव हार गए हैं यहां यह कहना भी सही होगा कि अमेठी से राहुल गांधी को भागने का भाजपा प्रचार करती रही और राहुल गांधी की रणनीति थी कि स्मृति इरानी को कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ता से चुनाव हराना है जिसमें राहुल गांधी कामयाब हुए इसके साथ ही जिस अयोध्या में राम मंदिर को लेकर भाजपा ने जमकर प्रचार-प्रसार किया, वहाँ भाजपा के सांसद लल्लू सिंह समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद से चुनाव हार गए।
मंदिर के मुद्दे पर भारी पड़ा जमीनी मुद्दा
लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने राम मंदिर निर्माण को प्रमुखता से मुद्दा बनाया चुनाव से पहले मंदिर का लोकार्पण रामलला की प्राण प्रतिष्ठा उसी कड़ी का हिस्सा था भाजपा ने मंदिर निर्माण को लेकर जो वादा किया था वह पूरा भी किया और विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर धर्म विरोधी होने का जमकर प्रचार प्रसार भी किया गया वावजूद इसके भाजपा का प्रदर्शन उसके अनुरूप नहीं रहा ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि विपक्षी इंडिया गठबंधन के मुद्दे ग़रीबी बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की समस्याओं और संविधान बचाने के मुद्दे पर जनता ने विश्वास किया चुनाव प्रचार के दौरान इंडिया गठबंधन के अखिलेश यादव और राहुल गांधी यह आरोप लगाते रहे कि भाजपा की सरकार बनी तो आरक्षण खत्म हो जाएगा और बाबा साहेब का संविधान बदल देंगे देखा जाए तो बीते दिन आए चुनाव परिणाम यह बताने के लिए काफी हैं कि राम मंदिर का मुद्दा अब भाजपा के लिए जीत का मंत्र नहीं रहा भाजपा को अब आगे की राजनीति अपने ही पुराने 2014 के मुद्दे को याद करते हुए महंगाई बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, पर ध्यान देना होगा क्योंकि इंडिया गठबंधन के नेताओं ने इन्हीं मुद्दों पर भाजपा की जबरदस्त तरीके से घेराबंदी की है राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने अग्निवीर योजना और बेरोज़गारी, महंगाई किसानों की समस्या संविधान बचाने और आरक्षण को खत्म करने को मुद्दा बनाकर भाजपा को घेरा और कामयाब भी हुए।