
सिंगरौली. पितृपक्ष इस साल बुधवार से शुरू होने के साथ ही तर्पण और श्राद्ध का सिलसिला शुरू हो जाएगा। पितृपक्ष के पहले दिन से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु नदियों और तालाबों के पास पहुंचकर स्नान कर पूर्वजों को कुशा, तिल और चावल आदि से अर्ध्य देंगे।
तर्पण के साथ ही श्राद्ध भी शुरू हो जाएंगे। इससे श्राद्ध में भोजन करने के लिए पंड़ितों की पूछ परख भी बढ़ेगी। इस साल श्राद्ध पक्ष में बड़ी संख्या में लोग अपने-पूर्वजों के उद्धार के लिए गया भी जा रहे हैं। पंड़ित डॉ. एनपी मिश्र ने बताया कि पितृपक्ष बुधवार 18 सितंबर से शुरू होकर दो अक्टूबर तक चलेगा। उन्होंने बताया कि तर्पण का महत्व सुबह के समय ही है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में तर्पण की परंपरा है। यही कारण है कि सुबह सूर्योदय से नौ बजे तक तर्पण किया जाना चाहिए। जिले में जलाशय व नदी के तटों पर बड़ी संख्या में लोग पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते हैं। उन्होंने बताया कि तर्पण और श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं वे धन-धान्य के साथ ही सुखी जीवन और निरोगी काया के लिए आर्शीवाद देते हैं। उन्होंने बताया, धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं।
श्राद्ध से जुड़ी कुछ बातें
जिन लोगों के सगे संबंधियों के सदस्यों की मृत्यु जिस तिथि पर हुई है पितृपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए।
जिस महिला की मृत्यु पति के रहते ही हो गई हो उनका श्राद्ध नवमीं तिथि में किया जाता है।
ऐसी स्त्री जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है तो उनका श्राद्ध मातृ नवमी वाले दिन करना चाहिए।
आत्महत्या, विष और दुर्घटना आदि से मृत्यु होने पर पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।
पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिए नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
अगर किसी कारणवश अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नही है तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना उचित होता है।
डॉ. एनपी मिश्र ने बताया कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु पुत्र-पौत्रादि, यश,स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि उनके पुत्र-पौत्रादि संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि ङ्क्षहदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक ङ्क्षहदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करन कहा गया है। इसे पितृयज्ञ भी कहा जाता है।
पितरों का मिलता है आशीर्वाद
श्राद्ध करने केे दौरान 15 दिनों तक गाय, कुत्ते और कौवे को लगातार भोजन जरूर दें। आप गाय को हरा चारा, कुत्ते को दूध और कौवे को रोटी दे सकते हैं। ऐसा करने से भी पितरों का आशीर्वाद आपको मिलेगा।
श्राद्ध का विशेष महत्व
पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। हालांकि हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष के 15 दिनों में श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण का अधिक महत्व माना गया है। इन दिनों में पितर धरती पर किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के बीच में रहने के लिए आते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध करने के कुछ खास तिथियां भी होती हैं।