MP News : सीधी जिले में अजय सिंह और कमलेश्वर की टिकट घोषित होने के साथ ही बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी..

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सीधी जिले में अजय सिंह और कमलेश्वर की टिकट घोषित होने के साथ ही बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी..

चुरहट से अजय सिंह को बीते चुनाव में मिली थी हार, सिहावल से कमलेश्वर पटेल को जीत..

बसपा ने भी सीधी विधानसभा से घोषित किया प्रत्यासी
सीधी और धौहनी विधानसभा के प्रत्याशियों पर अभी जारी है कांग्रेस पार्टी में मंथन..

विराट वसुंधरा समाचार /  ब्यूरो

🛑 सीधी : कांग्रेस ने लंबे समय के इंतजार के बाद प्रथम लिस्ट जारी कर दी है, जिसमें जिले की सिहावल व चुरहट विधानसभा प्रत्याशी की घोषणा कर दी गई है। उम्मीद के मुताबिक कांग्रेस इन दोनों सीटों पर पुराने चेहरों पर ही दांव खेला है, जबकि अभी भी सीधी व धौहनी विधानसभा सीट पर संशय बरकरार है। इन सीटों के लिए प्रत्याशी चयन पर अभी भी मंथन जारी है। इधर कांग्रेस के साथ ही बहुजन समाज पार्टी ने भी जिले की चुरहट व सीधी विधानसभा सीट से शनिवार की देर रात प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। बसपा धौहनी के अलावा जिले के तीन सीटों पर प्रत्याशी उतार चुकी है।

तीसरी बार चुनाव मैदान में कमलेश्वर..

कमलेश्वर पटेल का चुनावी सफर वर्ष २०१३ से शुरू हुआ, जहां उनके पिता खुद टिकट न लेकर अपने पुत्र को टिकट दिलाने की पैरवी किए। पहली बार ही कमलेश्वर पटेल भाजपा प्रत्याशी विश्वामित्र पाठक को करीब ३२ हजार मतों से चुनाव हराकर विधायक निर्वाचित हुए। फिर दूसरी बार वर्ष २०१८ के चुनाव में फिर से कमलेश्वर कांग्रेस की तरफ से पारी खेलने सिहावल सीट से मैदान में उतरे इस बार उनका सामना भाजपा प्रत्याशी शिवबहादुर सिंह सहित निर्दलीय प्रत्याशी विश्वामित्र पाठक से हुआ, जहां वे फिर भाजपा प्रत्याशी को ३१ हजार ५०६ मतो से शिकस्त देने में सफल रहे, तीसरी बार फिर कमलेश्वर व विश्वामित्र आमने-सामने हैं।

हार के बाद भी अजय सिंह पर भरोसा..

चुरहट विधानसभा सीट में कांग्रेस के पास अजय सिंह के अलावा कोई मजबूत चेहरा नहीं है। या यूं कहें कि कांग्रेस की तरफ से इस सीट से हमेश अजय सिंह के पिता अर्जुन सिंह तो उनके बाद अजय सिंह का ही कब्जा रहा, दूसरे कांग्रेस प्रत्याशी को यहां अवसर नहीं मिला। वर्ष १९९३ में कांग्रेस ने चिंतामणि तिवारी को चुरहट सीट से चुनाव मैंदान में उतारी किंतु वे भाजपा प्रत्याशी गोविंद मिश्रा से चुनाव हार गए। यही कारण है कि चुरहट सीट से एक बार हार का सामना करने के बाद भी पार्टी उन पर भरोसा जताते हुए चुनाव मैदान में उतारी है।

पिछली विधानसभा व लोकसभा चुनाव हारे, दूसरा नहीं था कोई मजबूत विकल्प..

अजय सिंह वर्ष २०१८ में विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की सरकार बनने पर भी खाली बैठ गए, जिन्हें पार्टी द्वारा वर्ष २०१९ में लोकसभा चुनाव में सीधी सीट से चुनाव मैंदान में उतारी, किंतु यहां भी उनको लंबे अंतराल से भी हार का सामना करना पड़ा। इससे पूर्व भी अजय सिंह लोकसभा चुनाव में सतना व वर्ष १९९३ में विधानसभा चुनाव भोजपुर सीट से सुंदरलाल पटवा से हार चुके हैं। दूसरा विकल्प न होने के कारण उन्हें चुनाव मैदान में उतारा गया है।

पिता की विरासत संभाल रहे कमलेश्वर, राजनैतिक कैरियर पर एक नजर..

कमलेश्वर पटेल के पिता इंद्रजीत कुमार कांग्रेस की सियासत में स्थापित नेता माने जाते थे। उनके जिंदा रहते ही कमलेश्वर पटेल संगठन के माध्यम से अपनी जमीन मजबूत करने में जुटे थे। एनएसयूआई से राजनीति की शुरुआत कर यूथ कांग्रेस में राष्ट्रीय महासचिव तक का सफर किए इस दौरान वे यूपी व महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों के प्रभारी भी रहे। प्रदेश कांग्रेस में कई पदों पर रहते हुए, वर्तमान में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य हैं, जिसमें मप्र से दिग्विजय सिंह के अलावा कमलेश्वर पटेल ही शामिल हैं। चुनावी सफर की शुरूआत वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव से शुरू किए, उसके बाद २०१८ में भी चुनाव मैंदान में उतरे दो बार विधायक सहित कमलनाथ केबिनेट में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रह चुके हैं।

सीधी जिले में अजय सिंह और कमलेश्वर की टिकट घोषित होने के साथ ही बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी…

अजय सिंह का राजनीतिक कैरियर की शुरुआत वर्ष १९८५ से हुई। अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर पंजाब के राज्यपाल बन बैठे। इस दौरान चुरहट विधानसभा सीट खाली हो गई, जहां से उपचुनाव में अजय सिंह कांग्रेस प्रत्याशी बतौर उतरें जहां वे पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। इसके बाद वे १९९१ में दोबार विधायक निर्वाचित हुए। किंतु वर्ष १९९३ में चुरहट से चुनाव न लड़कर अजय सिंह भोजपुर से तत्कालीन मु यमंत्री सुंदरलाल पटवा के खिलाफ चुनाव लडऩे चले गए, जहां पटवा को ६२ हजार २१६ तो अजय को ३३ हजार ४८ मत मिला, पटवा से वे २९ हजार १६६ मतों से चुनाव हार गए। यद्यपि ९३ में कांग्रेस की सरकार भी बन गई किंतु विधायक का चुनाव हारने के कारण वे पांच साल तक सरकार से बाहर रहे। वर्ष १९९८ में तीसरी बार चुरहट से विधायक निर्वाचित हुए, तब उन्हें दिग्विजय सिंह के केबिनेट में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग का जिम्मा मिला। चौथी बार २००३, पांचवी बार २००८ तो छठवीं बार २०१३ में विधायक निर्वाचित हुए। इस दौरान दो मर्तवा नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा भी संभाले।

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