MP news, भ्रष्टाचारी को बचाने BJP के सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह की पैरवी नहीं आई काम।
MP news, भ्रष्टाचारी को बचाने BJP के सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह की पैरवी नहीं आई काम।
सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की शिकायत पर 6 पंचायत जिम्मेदारों पर गिरी गाज।
गंगेव की सेदहा पंचायत के तत्कालीन सरपंच सचिव सहित 6 जिम्मेदारों के विरुद्ध बनाई गई 27 लाख से अधिक की वसूली।
विराट वसुंधरा
रीवा। समाजसेवी शिवानंद द्विवेदी द्वारा की गई शिकायत और भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के सामने
भारतीय जनता पार्टी के सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह की पैरवी पत्र बौना पड़ गया श्री द्विवेदी ने बताया कि गंगेव जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत सेदहा के तत्कालीन सरपंच पवन कुमार पटेल और प्रभारी सचिव एवं ग्राम रोजगार सहायक दिलीप कुमार गुप्ता के भ्रष्टाचार में उन्हें बचाने में विधायक सिरमौर दिव्यराज सिंह की पैरवी करने के बावजूद भी 27 लाख रुपए से अधिक की भ्रष्टाचार की वसूली बनाई गई है। वर्तमान मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवणे द्वारा धारा 89 की सुनवाई के बाद यह वसूली बनाई गई है। हाल ही में जिला पंचायत के इतिहास में अब तक की सबसे लंबी चली सुनवाई और दिनांक 11 अक्टूबर 2023 को जारी किए गए धारा 89 के सुनवाई आदेश में 27 लाख 25 हजार 129 रुपए का वसूली आदेश जारी किया गया है जिसे लेकर अब सिरमौर भाजपा विधायक की भ्रष्टाचारियों को सह देने के चर्चे भी गरम हैं।
विधायक ने लिखा था पत्र।
गौरतलब है कि सेदहा पंचायत जनपद पंचायत गंगेव के अंतर्गत आती है जो की मनगवां विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है परंतु सिरमौर तहसील होने के कारण और तत्कालीन सरपंच और उसके दलालों का संपर्क भारतीय जनता पार्टी के विधायक दिव्यराज सिंह से होने के कारण तत्कालीन विधायक ने भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए खुलकर पैरवी की। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा के विधायक दिव्यराज सिंह ने तत्कालीन सेदहा सरपंच को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए अपने लेटर हेड में दिनांक 19 जनवरी 2021 को कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 रीवा को पत्र लिखकर ग्राम पंचायत सेदहा के भ्रष्टाचार और अनियमितता की जांच के लिए गठित किए गए जांच दल को ही बदलने के लिए लेख कर दिया था। सूत्रों की मानें तो मौखिक और अन्य माध्यमों से तो कई बार वसूली और जांच को प्रभावित किया गया पर हद तो तब हो गई जब विधायक ने भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए अपने लेटर हेड तक का दुरुपयोग कर डाला।
विधायक ने दूसरी विधानसभा क्षेत्र में की थी पैरवी।
गौरतलब है कि भाजपा के विधायक दिव्यराज सिंह ने अपने विधायकी और पंचायत लेखा समिति के सदस्य पद का नाजायज तरीके से दुरुपयोग किया जिसके चलते तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत स्वप्निल वानखेड़े एवं तत्कालीन कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 1 आर एस धुर्वे पर दबाव बनाते हुए तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी आर डी पांडेय को ग्राम पंचायत चौरी से एवं सहायक यंत्री निखिल मिश्रा को ग्राम पंचायत सेदहा की जांच से हटाने के लिए पत्र जारी किया था जबकि उक्त अधिकारियों को जांच टीम से क्यों हटाया जाए इसका कोई भी तथ्यात्मक और वैध कारण उपलब्ध नहीं था और मात्र जांच में लीपापोती करने और जांच को प्रभावित करने एवं अपने मनमुताबिक भ्रष्टाचारी जांच अधिकारी को जांच टीम में बैठाने के लिए भाजपा विधायक दिव्यराज सिंह के द्वारा ऐसा कृत्य किया गया था। इसके बाद तो बकायदे एसडीओ आर डी पांडेय ने इन्ही सब नेतागिरी से तंग आकर वीआरएस तक ले लिया और रिटायरमेंट के लगभग 02 वर्ष पूर्व ही अपनी नौकरी छोड़ दी।
विधायक ने पंचायत राज लेखा समिति के सदस्य होने और अपने विधायकी का किया दुरुपयोग
गौरतलब है की दिव्यराज सिंह स्थानीय निकाय एवं पंचायत राज लेखा समिति के सदस्य होने के नाते रीवा के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के कार्यों पर दखल रखते थे जिसके कारण सभी पंचायत विभाग के अधिकारी दबाव के कारण न केवल जांच टीम बदल दिए बल्कि जांच रिपोर्ट आने के बाद भी वर्तमान 2023 के विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने तक जांच और आदेश को दबाकर रखे और विभिन्न प्रकार से वसूली को कम करने के लिए और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए बार-बार जांच पर जांच करवाते गए। लेकिन एक कहावत है कि झूठ को कितना भी छुपाओ वह छुप नहीं सकता और सच्चाई को कितना भी दबाओ वह दब नहीं सकती तो ठीक वैसे ही हुआ और सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की लगातार पैरवी और कड़ी मेहनत का नतीजा सामने आया और आचार संहिता लगते ही मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवणे ने दिनांक 11 अक्टूबर 2023 को धारा 89 का अंतिम वसूली आदेश जारी करते हुए तत्कालीन सेदहा सरपंच पवन कुमार पटेल, ग्राम रोजगार सहायक एवं प्रभारी सचिव रहे दिलीप कुमार गुप्ता, तत्कालीन सचिव शशिकांत मिश्रा, तत्कालीन उपयंत्री डोमिनीक कुजूर, तत्कालीन और बर्खास्त उपयंत्री अजय तिवारी एवं तत्कालीन सहायक यंत्री स्व0 अनिल सिंह सहित कुल 6 जिम्मेदारों के ऊपर कुल 27 लाख 25 हजार 129 रुपए की अब तक की वसूली निर्धारित की है जिसे जमा करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है और यदि राशि जमा नहीं की गई तो आगे की कानूनी कार्यवाही और भू राजस्व की भांति बकाया वसूलने एवं सिविल जेल भेजने के लिए निर्देशित किया गया है।
बड़ा सवाल: क्या गबन और भ्रष्टाचार में मात्र वसूली कर लेना पर्याप्त है-?
यदि जानकारों की माने तो किसी भी गबन और भ्रष्टाचार के मामले में वसूली मात्र कर देने से कार्यवाही पूर्ण नहीं होती है। जाहिर है जो शासन की राशि भ्रष्टाचार करते हुए गबन की गई है उसे तो हर हाल में ही वसूलना है क्योंकि वह शासन की राशि होती है अतः वसूली किया जाना कोई दंड नहीं है जबकि यदि दंड की बात करें तो जब तक सुसंगत धाराओं में एफआईआर दर्ज नहीं होती है और कानूनी कार्यवाही नहीं की जाती है तब तक गबन और भ्रष्टाचार के मामलों में कार्यवाही पूर्ण नहीं मानी जाती है। तो फिर अब यहां देखना पड़ेगा की मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरभ सोनवणे द्वारा सेदहा पंचायत में हुए व्यापक भ्रष्टाचार संबंधी दिनांक 11 अक्टूबर 2023 को लेकर जारी किए गए वसूली आदेश के बाद अब एफआईआर और अन्य कानूनी कार्यवाही कब की जाती है?
जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों और विधायकों का काला चेहरा हुआ उजागर।
गौरतलब है कि जिस प्रकार सत्ताधारी पार्टी के सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह द्वारा जनता के पक्ष में पैरवी न करते हुए भ्रष्टाचार की जांच करवाने के स्थान पर उल्टा दोषियों और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए और जांच को प्रभावित करने के लिए जांच टीम बदलने बाबत और अपने पद का गलत उपयोग करते हुए कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा पर दबाव बनाने के उद्देश्य से अपने लेटर हेड पर पत्र जारी किया गया था इससे साफ जाहिर है की जनता जिन्हें वोट देती है और चुनकर अपनी रक्षा और विकास के लिए भेजती है वह उल्टे भ्रष्टाचारियों की पैरवी करने लगते हैं।
अब सेदहा पंचायत में हुए व्यापक भ्रष्टाचार को ही देखें तब वर्ष 2016-17 से लेकर अब तक जिस प्रकार पिछले 6 साल में ग्राम पंचायत के भ्रष्टाचारियों की पैरवी इन जनप्रतिनिधियों द्वारा की गई है इससे इन कथित जनप्रतिनिधियों का वह काला चेहरा भी उजागर हो रहा है जहां जनता जनप्रतिनिधियों को तो चुनकर शासकीय संपत्ति की रक्षा और विकास के लिए भेजती है लेकिन किस प्रकार अपने पदों का दुरुपयोग करते हुए यह जनप्रतिनिधि नए-नए कारनामे करते हैं यह भी विचारणीय है। अब शायद जनता को ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुनने से पहले सौ बार सोचना चाहिए।